Indo-pak relations : decoded






भारत और पाकिस्तान के रिश्ते हमेशा उलझे ही रहे है,यह हम सब जानते है ,  आज एक बार फिर उलज गया !

आज के भारत - पाकिस्तान के रिश्ते में तीन पहलू है जिस पर फोकस करना जरुरी है.

आम तौर पर यह होता है की आवाम सिर्फ एक ही पहेलु देखती है , नेता फिर दूसरा पहेलु ले आते है चर्चा में पर, यहाँ एक तीसरा और एहम पहेलु है जो सोचना जरुरी है

पहेला पहेलु यह है की पाकिस्तान दुश्मन है,  हमना कर दो , आजतक के पोल में भी 99% दर्शक यही कह  रहे है, शिवसेना का भी कुछ कुछ ऐसा ही स्टेटमेंट है,  शिवसेना भी अच्छे से समजती  है की हमला  करना कोई  सही रास्ता नहीं है अभी ,  पर उनका स्टेटमेंट पब्लिक एंगर को  दर्शाता है

दूसरा पहेलु यह है की आईअसआई और टेरोरिस्ट नहीं चाहते ही भारत के तालुकात पाकिस्तान से अच्छे हो इसीलिए जब जब शांति वार्ता होती है तब तब ऐसे इंसिडेंट होते है. यह हमारी सरकार और  कई पार्टी के विचार है , कुछ हद तक यह सही भी हो सकाते है.

लेकिन तीसरा और पहेलु है  की पाकिस्तान दो तरफ़ा खेल खेल रहा है , एक साइड से शांति वार्ता की बात करता है नवाज़ शरीफ के रस्ते से और दूसरी तरफ पाकिस्तानी आर्मी अपना डर्टी गेम खेलती रहे .

अब यह तय करना बहुत  मुश्किल है की दूसरा और तीसरा पहेलु में से सही कौन सा है , पर जो भी हो भारत को अपनी सोच और पालिसी तीसरे पहेलु को ध्यान रख कर ही बनानी चाहिए.

ऐसा भी नहीं है की सिर्फ तिन ही पहेलु है , आज के ग्लोबल दुनिया में कही पहेलु है जो दो मुल्को के रास्तो पर असर करता है .

आम तौर पर खुफिया तंत्र के पास दुशम की सरकार के कुछ ऐसे सुराग होते है की जो पब्लिक में आं जाये  तो उनका सरकार में टिका  रहेना मुस्किल जो जाता है , जेसे की मोस्साद (जो की इसराल की जासूसी संस्था है ) को क्लिंटन सेक्स स्कैंडल के बारे में बाकि दुनिया से बहुत पहेले पता था पर उन्होंने पब्लिक नहीं किया और क्लिंटन पर प्रेशर बनाते  गए और अपना कम करवाते गए

हो सकता  है की भारत के बारे में भी कुछ ऐसा ही हो , कही बार ऐसा भी सुनाने में आया ही की कांग्रेस का ब्लैक मनी  के बारे में आईअसआई  कुछ प्रूफ दे सकती है और भी कई कारन हो सकते है.

और ऐसा भी नहीं है की हिंदुस्तानी एजेंसी हाथ पे हाथ धरे बेठी होती है, हमारी आर्मी और RAW   के बारे में जानना हो तो आपको पाकिस्तानी मीडिया को रेफेर करना पड़ेगा तब पता चल सकता है की इंडियन आर्मी एंड जासूसी  एजेंसी क्या क्या कर रही है और क्या कर सकती है.


उसूलों पर आंच आये तो  टकराना  जरूरी  है ,
जिंदा हो तो जिंदा नज़र आना जरूरी  है






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