क्या यह आज़ादी की दूसरी लड़ाई है ?
“आप” का कहना है की 1947 में तो सिर्फ हमे
स्वतंत्रता ही मिली थी और यह लड़ाई स्वराज की है . तो प्रश्न है की क्या खरेखर में यह आज़ादी के दूसरी लड़ाई है
?
वेसे हमारे देश को एक और स्वतंत्रता मिली थी 1991 में (
शायद उधोगपति तक सिमित थी ) ।
आप कोई भी इतियास की बुक उठा लीजिये और स्वातंरा संग्राम की 1935 के आस पास की
गति विधिये पढ़े तो शायद आप को लगेगा की हा यह आज़ादी का दूसरा आंदोलन है ।
आज “आप” और कांग्रेस एक
दूसरे के कट्टर विरोधी है , नदी के दो छोर की तरह लग रही है पर जेसे यह दो छोर नदी के उदगम स्थान
पर मिलते है वेसे ही कांग्रेस और “आप” 1935 की नजर से देखेंगे तो समान ही
लगेगी ।
१ १ .)
तब प्रश्न था गवर्मेंट ऑफ़ इंडिया एक्ट 1935 और आज प्रश्न है लोकपाल अक्ट
२.) कांग्रेस में तब दो विचार थे - १ ग्रुप चाहता था की कांग्रेस को ऐसेंब्ली में सामिल होकर बदलाव की कोशिश करने चाहिए जब की
दूसरा तबका मनाता था की बदलाव सिर्फ बहार रहेकर ही लाया जा सकता है , ऐसे की कुछ एना - अरविन्द के मामले में हुआ ।
३.) तब कांग्रेस को कम संसाधनो से सरकार चलानी थी जेसे की - पैसे का अधिकार सिमित था , सेंटर के कानून के मुताबिक चलना था वगेरा
वगेरा । आज भी डेल्ही को पूर्ण राज्य का दर्ज्ज्ज नहीं मिला है और अरविन्द की सराकर को सिमित रिसोर्सिस से ही काम चलना पड़ रहा है ।
४.) तब गांधीजी ने कहा था की कांग्रेसी औ का ऐसेंब्ली का काम सिमित रहना चाहिए
हमारा मुख्य उद्देश मास मोबिलाजेसन होना चाहिए स्वतंत्र की लड़ाई के लिए । आज भी अरविन्द की सरकार पॉवर में रहते हुए धरना प्रदशन करती है वोह यही दिखती
है ।
५.) कांग्रेसी के ऐसेंब्ली आगमन से एक अनोखा वातावरण बन गया था देश में ,
अब लोगो का शाशको के प्रति देखने का नजरिया बदल गया था ,
लोग नेता से जुड़ने लगे थे (नेता मतलब शाशक -
गांधी , नहेरु , पटेल से तो लोग कबके जुड़े हुए थे पर वोह शासक के तौर पे
नहीं था ) वेसे ही आपक की जीत से पुरे देश में एक अलग माहोल बन गया है ।
६.) कांग्रेस ने तब पावर में आते है सबके पहेले लैंड रेवेन्यू 50% तक कम कर दिया
था ,
लेबर के लिए स्पेशल कानून बनाये थे , कांग्रेस ने असेंबली में रहेकर वोह सब काम किये थे जो देश
के लोगो को तुरंत और सीधा फायदा पहुचे और असेम्ब्ली के बहार रहते ही स्वतंत्र
संग्राम चलते रहे । वेसे ही अरविन्द ने
सर्कार ने बिजली , पानी की समस्या औ का हल किया और स्वराज के लिए लड़ते दिख रहे
है ।
यहाँ सिर्फ मेने मोटे मोटे तौर पेहे साम्यता एक्सप्लेन की है , बहुत और भी कही साम्यता है , जेसे 1939 में बोसे बाबू ने कांग्रेस की खुले आम आलोचना की फिर अपना फॉरवर्ड ब्लोव्क बनाया वेसा ही कुछ बिन्नी ने पिछेले हप्ते किया ।
टाइम हो तो कही से भी आज़ादी के लड़ाई का 1935 - 1939 के बीच का इतियास पढ़े और १-१- पैरेग्राफ के बाद आज के सन्दर्भ में आप से जोड़े तो कड़िया अपने आप जुड़ती दिखेगी ।
यहाँ सिर्फ मेने मोटे मोटे तौर पेहे साम्यता एक्सप्लेन की है , बहुत और भी कही साम्यता है , जेसे 1939 में बोसे बाबू ने कांग्रेस की खुले आम आलोचना की फिर अपना फॉरवर्ड ब्लोव्क बनाया वेसा ही कुछ बिन्नी ने पिछेले हप्ते किया ।
टाइम हो तो कही से भी आज़ादी के लड़ाई का 1935 - 1939 के बीच का इतियास पढ़े और १-१- पैरेग्राफ के बाद आज के सन्दर्भ में आप से जोड़े तो कड़िया अपने आप जुड़ती दिखेगी ।
आज भले ही
कांग्रेस और “आप” विरोधी लग रही हो पर एक नजरिये से "आप" वोह ही सब कुछ कर रही है जो कांग्रेस ने अंग्रेजो के खिलाफ 1935 में किया था ।
शायद 2014 का
इलेक्शन “क्विट कांग्रेस” भी हो
सकता है जेसे ही 1935 के बाद 1942 में क्विट इंडिया हो गया था। "क्विट इंडिया" भारत की स्वतंत्र संग्राम की लड़ाई
का आखिरी अद्ध्याय साबित हुआ था ।
तो चलो देल्ली...
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