मोदी जी , जरा सुनिये तो
मोदी जी २५ को अरवली में थे , ट्राइबल मेला नाम
के प्रोग्रामे में आये थे , में भी ३-४ दिन पहेले वहा था , तब कार्यक्रम की तैयारिया पुरे जोर शोर से चल रही थी पूरा
शहर लग रहा था की “मोदीमय” हो
गया है , कॉलेज में , चाय की दुकान पे , गल्ले पे , रिक्शॉ स्टैंड पे सब जगह एक ही बात च रही थी
पर जब वहा से घर लौट रहा था बस में १
चर्चा हुयी थी ३ लोग के बिच में , ध्यान से सुने तो पता चल सकता है की राजनीती के कितने पहेलु
हो सकते है और केसे आम रोजाना ज़िंदगी को इफ़ेक्ट करते है
चर्चा का सेंटर पॉइंट यह था : १ फिक्स पैड कंडक्टर अपनी व्यथा सुना रहा था २
लोग को
कंडक्टेर १ >>
ड्यूटी से घर लौट रहे थे , फिक्स पैड ( गुजरात में पिछेले कुछ साल से फिक्स पेय के तौर पे भारती हो रही है इसमें
पहेले 5 साल के लिए आपका पगार फिक्स होता है , जेसे कंडक्टेर के लिए 5300 है )
कंडक्टेर २ >> ऑन ड्यूटी जिनका पगार २०००० आस पास था
पैसेंजर >>
महिला टीचर - पगार २०००० आस पास
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कंडक्टेर १: यह मोदी
साहब आ रहे है उसके पीछे कितना खर्च कर
रहे है यह लोग
पैसेंजर( महिला
टीचर ) : भाई यह सब हमारे पैसे से ही हो रहा है
कंडक्टेर १: मैडम आप
बिलकुल सच कहे रहे है
यहाँ फ्री में 900 बस भेजने वाले है , करोड़ रुपइयो का डिजेल का धुआ उदा देंगे ,
और सारा भार आम पैसेंजर पे पड़ेगा (पिछले३ महीने में बस भाड़ा 30% बढ़ाया है गुजरात सरकार ने )
और हमसे ओवर
टाइम करवाएंगे , और जो अच्छे पगार वाले है उनसे तो काम करवाते
नहीं (यहाँ उनका इशारा सेनियोर की और था )
कंडक्टेर २ : अरे भाई छुट्टिया तो सबकी केंसल की है न , हमारे घर
में शादी हो या कोई और प्रसंग हो हमे तो हमारे प्रसंग छोडके इनके लिए ही सेवा करनी
पड़ती है न
पैसेंजर( महिला
टीचर ) : पर मोदी के आने से विकास तो हुआ ही है,
यह तो मानना ही पड़ेगा
कंडक्टेर १: कौन सा
विकास मैडम ? हुआ होगा हमे तो नहीं पता , 5300 में पूरा महीना घर चलना पड़े वोह विकास
हमारे किस कामका ?
पैसेंजर( महिला
टीचर ) : अरे भाई साहब पगार तो जितनी भी हो कम ही पड़ती है ,
हमारी २०००० है पर उसमे से २००० दूध में चले जाते है ,
२००० लाइट और मोबाइल बिल में महीने के आखिर आते आते हमे भी
कही से पैसे का जुगाड़ कर ना ही पड़ता है
कंडक्टेर १: दूध ?
अरे मैडम दूध क्या होता है वोह तो हमे पता ही नहीं है ,
45 / लीटर दूध आता है अब 5300 में अनाज खाये या दूध खाये , यहाँ तक की बच्चे भी बिना दूध के ही रहे रहे है
कंडक्टेर २ : अरे भाई चिंता न करो सब ठीक हो जायेगा ३ साल तो निकल गए अब २ साल और निकल
लो फिर परमेन्ट हो जानेके बाद मज़े ही है
कंडक्टेर १: इसी की आश
में जीवन कट रहा है, मेरा मन ही जनता है की केसे १-१ दीन कट
रहे है
शायद मोदी जी का परिवार होता तो उन्हें पता चलता की जब बच्चे भूखे सोये तब क्या गुजरती है बाप के मन पे , पर उन्होंने तो गृहस्ती बसाई नहीं है इसीलिए सायद नही पता की 5300 में महीना केसे निकला जा सकता है
उसमे मोदी जी का कसूर नहीं है क्युकी उन्हें अबुभव ही नहीं है ना
अब यह सुनके सच में पता नहीं चल रहा था की क्या सोचे और क्या करे ?
अगर लोग ऐसी हालत में हो तब चमकते शहर , अच्छी सड़के , बिजली , रिवर फ्रंट इन सबका कोई अर्थ नहीं है
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