भारतीय डेमोक्रेसी - अभी हम जिन्दा है
सिस्टम सड़ चूका है , बस चले ही जा रहा है , देखना है कब तक चलता है वगेरा वगेरा । ऐसी ही भावना बन चुकी
है और कुछ हद तक सही भी है पर आज जो देखा वोह तो..बाप रे बिल्कुक अलग ही तस्वीर थी । मेरे जेसे भारतीय
डेमोक्रेसी के नास्तिक को भी लगा की कुछ हो सकता है । सिस्टम सुधर भी सकता है अगर.....
आज सुबह पोलिंग बूथ पे गया था । वोटर कार्ड बनवाने , आज तक कभी वोट किया नहीं है और अभी वोट करने का का कोई
प्लान भी नहीं है । वोट नहीं देना है तो
वोटरकॉर्ड क्यों बनवाना है ?
वोटर कार्ड का इस्तमाल तो एस अ अड्रेस प्रूफ ,
फ़ोटो प्रूफ होता है न बस इसी लिए ।
अब बारी है मैन पॉइंट की , हुआ क्या , क्या नया देखा ? यह देखा की पोलिंग बूथ पे ४०-५० लोग थे सुबह १० बजे। अब सोचोगे की ४०-५० लोग
में क्या बड़ी बात है ? है बड़ी बात , यह अहमदाबाद है , यहाँ लोग रविवार को ११ बजे ही उठते है । ३ ही तरह के जल्दी
( ८ बजे ) उठते है १() बच्चे क्रिकेट खलने के लिए , (२ ) मिडिल उम्र के लोग जलेबी फाफड़ा के लिए और (३ )
बूढ़े लोग अपने बेटे को उठाने के लिए ( ताकि वोह उठे और जल्दी से
जलेबी फाफड़ा ले आये ) । ऐसा सन्डे कल्चर
होने के बाद भी तकरीबंध सभी उम्र के लोग थे पोलिंग बूथ पे ,
और सबसे मज़ेदार और अद्भुत बात यह थी की महिलाये जो सुबह
व्यस्त होती है उनकी तादाद पुरषो से भी ज्यादा थी । सुबह १० बजे ही फॉर्म खुट पड़े थे ।
अब इसका कारन क्या है यह तो नहीं पता , शायद मोदी पीऍम के कैंडिडेट है इस लिए या तो अरविन्द के
झाड़ू का जादू हो या फिर कांग्रेस के १० साल से शासन की नाराजगी । वोह जो भी हो पर यह बात तो एकदम सही है की इस
बार कुछ बात अलग है ऐसा नहीं है की पब्लिक पेहेले चुनाव में रस नहीं लेती थी ,
लेती ही थी पर इस बार कुछ ज्यादा ही रसदार हो गया है अब इसे
सब्दो में लिखना भी कठिन है ।
यह सब उत्साहित करने वाले द्रस्य थे
पर कुछ दृस्य उदास करने वाले भी देखे , पोलिंग बूथ स्कूल था , स्कूलकए प्रवेश द्वार में ही दो लोग को बात करते सुना :
"अरे भाई सराकर
को वोट की पड़ी है हम क्यों इधर से उधर धक्के खाये , अगर
सराकर को वोट चाहिए तो घर आके दे जाये वोटर कार्ड , हम क्यों
अपन समय बरबाद करे”
अब इनसे कौन समजाय की डेमोक्रेसी का मतलब ही होता है की “ ऑफ़ ध पीपल, बाय ध पीपल , फॉर ध पीपल”
। अगर आप कुछ भी नहीं दोगे देश को तो देश भी आपको कुछ नहीं देगा । टैक्स देना सब कुछ नहीं होता ,
और भी बहुत कुछ जिम्मेदारिया है नागरिक की देश के प्रति । वोट देना और टैक्स देना बहुतो में से दो छोटी ही जिम्मेदारिया है ।
आज लोग सिर्फ "फॉर ध पीपल " को ही लोकशाही मानते है और शायद इसी लिए ही अम्बानी और अदानी देश को चला रहे है ।
अगर आप खुद ही " ऑफ़ ध पीपल, बाय ध पीपल " को डिलीट कर रहे हो तो फिर आप खुद
ही अदानी , अम्बानी के लिए स्पेस क्रिएट कर रहे हो ।
अब लोग तो जागृत हो ही गए है इनमे कोई
शक नहीं है । बस अब एक ही काम करना है की उनको अगत्य के मुद्दो के प्रति
जजग्रुत बना है , जो की सबसे मुस्किल काम है । अभी तक ज्यादा लोग जाती ,
धर्मं , सम्बन्ध आधारित वोट देते चले आये है इसको मिटाकर ऐसा कुछ
करना होगा की लोग मुद्दो के आधारित वोट दे , मुद्दे मने सड़क ,
बिजली , एजुकेशन की सुविधाये वगेरा वगेरा ।
आज भी लोग कहते है की इस चुनाव में भी ज्यादातर लोग जाती और धर्म के आधारित ही
वोट देने वाले है , हो सकता है यह सही भी हो , क्यूकि ऐसा कहने वाले लोग आज़ादी के टाइम से चुनाव देकहते
आये है । पर मेरा मानना है की यह तीन फैक्टर इस बार अच्छा असर करेंगे : मिडिल क्लास के वोट ,
सोशल मीडिया और फर्स्ट टाइम वोटर ।
अब यह तो समय पर ही आधारित है की क्या होता है , केसे होता है ।
पर आज हुए अनुभव से दो बात ही कह सकता हु
- वोटिंग प्रतिशत ७० आसा पास रहेगा ,
और शायद इससे भी ज्यादा
- चुनाव में गरीब और मिडिल क्लास लोग ,
अमीरो से ज्यादा संख्या में और ज्यादा उत्साह से भाग लेते
है
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