स्वराज कल , आज और कल - अ स्टोरी ऑफ़ मोतीलाल टू अरविन्द


 

आज स्वराज शब्द अक्सर आम आदमी पार्टी की और से सुनाने को मिलाता है पर स्वराज शब्द १९३० से भारतीय राजनीती में चला आ रहा है भारतीय स्वतंत्र संग्राम  कही सालो से चल रहा था पर पूर्ण स्वराज की मांग १९३० के कांग्रेस अधिवेशन में उठी थी
 
अगर आप आम आदमी पार्टी और स्वराज पार्टी के बारे में पढ़े तो आपको बहुत सारी समानता दिखेगी , आज कांग्रेस जिस  आम आदमी पार्टी का विरोध कर रही है उनमे और उनके परदादा (मोतीलाल नहेरु)  ने बनायीं हुयी पार्टी में बहुत सारी समानता है , लगभग लोगीकली दोनों सेम  ही है
 
आम तौर पर गांधी परिवार की शरुआत जवारलाल नहेरु से मानी जाती है भारतीय राजकरण में पर सही में यह परम्परा की शरुआत मोतीलाल नहेरु से होती है मोतीलाल नहेरु और अरविन्द केजरीवाल में बहुत सारी समानता है

1. कैरियर

मोतीलाल नहेरु ने अपनी लीगल प्रैक्टिस छोड़कर गांधीजी के प्रभाव से अपना सारा जीवन भारतीय स्वतंत्र संग्राम में लगा दिया था वेसे ही अरविन्द ने भी इनकम टैक्स के बेहतरीन करियर छोड़कर एना के साथ जुड़  गए

2 . पृष्ठभूमि : स्वराज पार्टी और आम आदमी पार्टी

चौरी चौरा घटना  के बाद जब गाधजी ने नॉन को -ऑपरेशन आंदोलन समाप्त कर दिया तब कांग्रेस दो गुट में बट गयी थी , एक गुट अभी भी ऐसेंब्ली का बॉयकॉट चाहता था जिनमे गांधी थे दूसरा गुट मनाता था की बदलाव ऐसेंब्ली में होकर ही आ सकता है उन में  मोतीलाल नहेरु थे

लोकपाल के आंदोलन के बाद जो अन्ना आंदोलन की हालत वोह ही थी जो  ८२ सेल पहेले कांग्रेस की थी अन्ना आंदोलन भी २ गुट में बट गया था एक गुट अन्ना का था जो नहीं चाहता था की बदलाव के लिए ऐसेंब्ली में जाया जाये और दूसरा अरविन्द का था जो मानाने लगा था की बदलाव के लिए असेंबली में जाना ही होगा

3. नई पार्टी की नींव  और इलेक्शन में जीत 

मोतीलाल नहेरु ने जब स्वराज पार्टी बनायीं तब उनके सामने कही चुनौतिया थी उनके पास कोई अनुभव नहीं था नहीं तो कोई ग्रास रूट पोलिटिकल सपोर्ट था पर पार्टी बनाने के २ साल बाद हुए  १९२४ के चुनाव में जोरदार सफलता पायी

कुछ ऐसे ही हालत आम आदमी पार्टी के ही थे , न कोई सपोर्ट न कोई अनुभव पर डेल्ही असेंबली के रिजल्ट ऐसा ही था जो १९२४ के इलेक्शन में स्वराज पार्टी का था , आम आदमी पार्टी ने जोरदार सफलता हासिल की

4. पैरेंट संगठन के साथ राजनीतिक विचारो में समानता

आज़ादी के दिनों में कांग्रेस १ आंदोलन हुआ करता था स्वराज पार्टी और कांग्रेस की सारी राजनीतिक पालिसी सेम ही  थी सिर्फ उन्हें पाने का रास्ते अलग  थे कांग्रेस और स्वराज पार्टी दोनों अंग्रेजी शासन का समापन चाहते थे , दोनों ही स्वराज चाहते थे पर उन्हें पाने के लिए १ ने आंदोलन का रास्ता अपनाया तो दूसने ने अस्सेम्ब्ले में जाकर बदलाव लेन का प्रयास किया

ऐसी ही परिसस्थिती आम आदमी पार्टी की है , उनका अन्ना के सह कोई वैचारिक मतभेद नहीं है , दोनों ही भ्रटाचार में मुक्ति चाहते है , दोनों की मजिल १ ही है पर रास्ते बदल  गए है

पर दोनों स्वराज के आंदोलन में १ बहुत बड़ा फर्क है  : 

मोतीलाल जब १९२४ इलेक्शन प्रचार करते थे तब वे  कांग्रेस की पालिसी का फुल जोर समर्थन करते है और दूसरी और कांग्रेस भी स्वराज पार्टी  के नेता की जाहेर मंचो पे प्रशंसा करती थी पर आज वोह यूनिटी नहीं दिखती अन्ना और अरविन्द के बिच ( हाला की अरविन्द तो हमेश एना की प्रसंसा किये ही दिखाते है पर अन्ना की और से वोह रिस्पांस नहीं मिलाता )

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