सीसैट - हाइप एंड ट्रूथ
जी हाँ, आपने सही पढ़ा, टाइटल इंग्लिश में है पर लिखा हिंदी में है । फिलहाल ऐसी
ही कन्फ़्यूज़िंग
परिस्थिति हो रखी है सभी प्रादेशिक
भाषा के छात्रों की । जो ना तो हिंदी ठीक से लिख , पढ़ या बोल सकते है और जो थोड़ी बहुत इंग्लिश लिख-पढ़ सकते है, उसका भी विरोध हो रहा है । गुजराती/मराठी की बात ही नहीं उठ रही है
।
इन छात्रों का हिंदी के ट्रांसलेशन को लेकर गुस्सा होना जायज़ है
पर इसकी आड़ में छात्र गलत बातों को गलत बहाना देकर, अपनी बातें मनवाने (नीचे
के भाग में पॉइंट टू पॉइंट लिखा
है) का प्रेशर बनाना चाहते है,
ऐसा प्रतीत हो रहा है । और इसमें
कुछ गलत भी नहीं है, चार्ल्स डार्विन की थियोरी में इसका जवाब है: “हर एक प्राणी को अपना
अस्तित्व कायम करने के लिए लड़ना
होता है.”
मैं यह इसलिए लिख रहा हूँ
क्यूंकि
मेरे लिए सीसैट अच्छा ऑप्शन है ।
छात्रों से ज्यादा कुछ पत्रकार, लेखक, राजनेता हैं, जो यूपीएससी को लेकर दुष्प्रचार कर रहे हैं । हिंदी का झंडा
उठकर टीवी पे बोलने-लिखने वाले, जिनके खुद के बच्चे इंग्लिश माध्यम में पढ़े हुए हो - पर यह एक अलग विषय
है । खैर, पैटर्न जो भी हो,
मेरे हिसाब से कम से कम १० साल तक
तो चेंज नहीं ही होना चाहिए । पैटर्न चेंज होने से हिंदी, इंग्लिश,
गुजराती, सभी भाषाओं के छात्रों को प्रॉब्लम
होगी ।
हाइप १: सीसैट से सिर्फ हिंदी वालो को नहीं बल्कि
सारी प्रादेशिक भाषा के छात्रों को नुकसान होता है । हमारी लड़ाई इन सबके लिए है (यह
लाइन मैंने टीवी पर एक छात्र को बोलते सुना है)।
ट्रूथ: सीसैट का पेपर हिंदी और इंग्लिश दोनों में ही आता है तो अन्य
भाषा के छात्रों को इनमें से कोई एक ही चुनना होता है । यह लड़ाई हिंदी के छात्रों की
खुद की ही है और खुद के लिए ही है । इंटरव्यू भी दो ही भाषा में लिए जाते है,
गुजराती के लिए ट्रांसलेटर की व्यवस्था
होती है । यह प्रदर्शन करने वाले छात्र या हिंदी का झंडा उठाकर बोलने-लिखने वाले क्यों इस पर कुछ नहीं
कहते?
हाइप २: सीसैट से हिंदी में पास होने वालो की संख्या
कम हो गयी है ।
ट्रूथ: सीसैट के चलते कम नहीं हुई है । यह इंजीनियरिंग
और मेडिकल के छात्रों के एग्जाम में बढ़ते हुए इंटरेस्ट के चलते कम हुई है । अगर
कोई बिहार का हिंदी स्कूल में पढ़ा हुआ छात्र और फिर इंजीनियरिंग की हो तो वह
युपीएसी की एग्जाम देगा तो इंग्लिश में ही देगा क्युकी इंजीनियरिंग का
पेपर तो इंग्लिश में ही होता है अ। इसके अनुसार फाइनल रिजल्ट में इस छात्र को इंग्लिश
मीडियम वाला गिना जायेगा पर वास्तव में तो वह हिंदी मध्यम से ही आता है । और अगर फिर
भी हिंदी मीडियम वालो की संख्या कम हुई है तो इसमें गलत भी क्या है ?
गुजराती पूरे भारत में ५% है पर
रेलवेज में 0.0५% भी नहीं है । तो क्या भाषा और
नौकरी का अनुपात हो सकता है ? दक्षिण भारत के लोग इसरो में ज्यादा और ऊँची पोस्ट पर होते है
तो क्या उनके एंट्रेंस एग्जाम में भी आप कहेंगे कि हिंदी वालो की संख्या कम हुई है
?
हाइप ३: सीसैट से आर्ट्स
के छात्र यानि दिल्ली के लोगों की भाषा में कहे तो ह्यूमैनिटी के स्टूडेंट्स को नुकसान
है । यह लड़ाई किसी एहसान के लिए नहीं है, लड़ाई सिर्फ ‘लेवल प्लेइंग फील्ड’ के लिए है ।
ट्रूथ: सही में देखा जाये तो ह्यूमैनिटी के स्टूडेंट्स को प्रीलिम्स
और
मेंस दोनों में ही फायदा है । आर्ट्स
मतलब हिस्ट्री,
जियोग्राफी,
इकोनॉमिक्स,
लॉ इत्यादि । प्रीलिम्स में जनरल स्टडी के पेपर
का ५०% भार होता है- जनरल स्टडी में करंट अफेयर्स को छोड़ कर सभी प्रश्न हिस्ट्री,
पॉलिटिक्स,
जियोग्राफी से ही आते है । मेंस
में जनरल स्टडी का भार करीब करीब ५०% होता है (पेपर जी एस ४ को छोड़कर) । मेंस में ७५०
मार्क के प्रश्न हिस्ट्री, कल्चर, पॉलिटिक्स एंड फॉरेन अफेयर्स, लॉ इत्यादि से जुड़े होते हैं,
मतलब हर एक आर्ट्स के स्टूडेंट्स
को इंजीनियरिंग के स्टूडेंट्स से करीब करीब ५०-६० मार्क का फायदा है ।
हाइप ४: सिविल सर्विसेज
के अफसर को लोगों के बीच काम करना होता है तो उन्हें हिंदी का ज्ञान होना जरुरी है
।
ट्रूथ: अव्वल तो ये कि भारत में साइंटिस्ट को छोड़कर ज्यादातर
सरकारी कर्मचारियों को लोगों के
बीच में ही काम करना होता है और दूसरा (यह बात कैसे लिखे यह समझ नहीं आ रहा था तो उदाहरण
से समझाना चाहता हूँ)- इस बार गुजरात में ११ आईएएस कार्डर आये,
अब वह कौन से माध्यम से आये यह तो
पता नहीं,
पर इतना जरूर पता है कि एक भी गुजराती
माध्यम से नहीं है । अब इनको गुजराती बोलने वाले लोगों के बीच काम करना है तो मैं हिंदी
एक्सपर्ट्स से यह पूछना चाहूंगा कि उनका यह तर्क “अफसरों को लोगों के बीच काम करना होता है तो उन्हें हिंदी
का ज्ञान होना जरुरी है” - इस सन्दर्भ में कैसे फिट हो सकता है ?
काम का भाषा से लेना देना होता है
पर अगर काम मिल जाए तो भाषा तो धीरे धीरे आ ही जाती है । यह मैं एक मज़ेदार और सच्चे
उदाहरण से बताना चाहता हूँ ।
( 1974 - Mumbai @ British Embassy - Gujju Diamond
Businessman In queue for visa )
British Official : You do not know Even a single
word of English How can I allow you to go England ? ( A Gujju Lady stand near
Translate in Gujarati and Said to Gujju Businessman )
Gujju Replied : ( In Gujarati) You don't know a
single word of Hindi than also you work in India na ? ( The same lady
translated in English and Told to British official )
Visa Approved ! ( From the book : Dhandha -How
Gujarati do business )
हाइप ५: सीसैट से गरीब छात्रों को नुकसान है ।
ट्रूथ:इसका कोचिंग क्लास की परम्परा से कोई सम्बन्ध नहीं है
। पिछले १५ साल से इनका महत्व सबको पता है । एक ही कलास के ५ - ६ बच्चे टॉप १० में होते है (क्लास
का नाम भी सबको पता ही है)। शायद २०११ में - टॉप १० एक ही क्लास से थे - तब तो सीसैट
नहीं था । मेरे हिसाब से सीसैट से नहीं, गरीब छात्रों को कोचिंग क्लास की परंपरा से नुकसान होता
है
। क्यों कोई राजनेता या हिंदी का
एक्सपर्ट इस पर कभी कुछ नहीं कहता ? कोई कहे न कहे गरीब छात्र वर्षों से परीक्षा पास करते आये हैं
और करते रहेंगे, क्यूंकि एग्जाम के लिए जो जज़्बा
चाहिए वह कोई भी कोचिंग क्लास नहीं दे सकता ।
( Edited by : Aanchal )
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