मिस्टर मोदी आप भारतीयों के प्राइम मिनिस्टर हो, न की ऍनआरआयी ( NRI) के और न की अंग्रेजो के !
जब से "भारत" के प्राइम मिनिस्टर ने कोरोना के चलते २१ दिन के लॉक डाउन का ऐलान किया
है तभी से लगातार मीडिया में रिपोर्ट्स आ रही है की शहरों में काम करने वाले लोग कितनी
लाचारी से गुजर रहे है । कई औ को मालिकों ने काम से निकाल दिया है । उनके पास
गुजरान चलाने के पैसे नहीं है तो दूसरी और सरकार उन्हें वापस अपने गाओं जाने से रोक रही है । न तो प्रधान मंत्री को और न तो
किसी मुख्यमंत्री को इनकी फ़िक्र है । और फ़िक्र होगी भी क्यों ? यह मज़दूर इलेक्टोरल बांड से उनको चंदा कहा देते है !!
बात करनी ही है तो शरुआत से ही करते है.
लॉक डाउन करने की जरुरत क्यों आयी ? क्यूंकि कोरोना को फैलने से रोकना था ।
अब प्रश्न है की कोरोना आया कहा से? कोरोना आया विदेश से ।
तो फिर कोरोना को भारत में आने से रोकने के लिए सरकार ने क्या किया ? इसका जवाब है कुछ नहीं ।
अब प्रश्न है की कोरोना आया कहा से? कोरोना आया विदेश से ।
तो फिर कोरोना को भारत में आने से रोकने के लिए सरकार ने क्या किया ? इसका जवाब है कुछ नहीं ।
वह दिन था ४ जनवरी जब विश्व स्वास्थ्य संगठन ने
कोरोना की संज्ञान ले थी। वह दिन था १० जनवरी की जब विश्व स्वास्थ्य संगठन ने
कोरोना गाइड लाइन जारी की थी । ४ जनुअरी से लेकर मार्च तक मोदी सरकार ने क्या
किया ? जवाब हे की विदेश से आने वाले लोगो की
स्क्रीनिंग । पहले दिन से सबको पता था की अगर कोरोना
का १ भी मरीज़ भारत में आ गया तो १३० करोड़ की आबादी वाले भारत में की जहा जहा मात्र
१ लाख आईसीयु बेड है वहा परिस्थिति संभालना कितना मुश्किल होगा । फिर भी सरकार ने सबको आने दिया बिना कोई रोक टोक
। सरकार ने बहार से आने वालो की स्क्रीनिंग की पर याद रहे की कोरोना के लक्षण संक्रमण में आने
के तुरंत नहीं दीखते । कोरोना के लक्षण विकसित होने में
७-१० दिन भी लग सकते है । फिर भी सरकार ने विदेश से आने वालो पे
कोई पाबंधी नहीं लगाई ।
यही नहीं, विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कोरोना को ११ मार्च के दिन
महामारी घोषित कर दिया था फिर भी मोदी सरकार ने अगले २४० घंटे तक यानि के २२ मार्च
तक विदेशो से प्लेन आने दिए । दूसरी और बेबस और लाचार मज़दूर को शहरों से अपने गाओं
नहीं जाने दिया जा रहा आज । अगर यह सरकार जनवरी से ही विदेश से आने वाले पैसेवाले
लोगो को रोक देती तो आज गरीब, मजबूर और लाचार मज़दूरों को डंडे मारकर घर जाने से
रोकने की नौबत नहीं आती ।
अब बात करते है ऍनआरआयी की । हम सबको पता है की भारत सरकार ने वुहान और
ईरान में फंसे कई भारतीयों को इवेक्युएट किया था । इतना ही नहीं आज सुहब ही आदित्य कौल ने
ट्विटर पे लिखा है की भारत सरकार इजराइल के ३०० नागरिको को वापस अपने देश भेजने जा
रही है एयर इंडिया से । भारत सरकार जब इतना कुछ कर सकती है तो फिर अपने ही नागरिक
के जो शहर में फँस गए है उनको सुरक्षित अपने गाओं क्यों नहीं पहुंचा सकती ? भारत सरकार बिलकुल पहुंचा सकती है पर
मिस्टर मोदी के पास न तो इसका कोई प्लान है न कोई इसकी मनशा । तभी तो मुझे याद
दिलाना पड़ रहा है की मिस्टर मोदी आप भारतीयों के
प्राइम मिनिस्टर हो न की अमेरिकन के और न की अंग्रेजो के ।
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IMAGE Credit - BBC |
बात सिर्फ कोरोना तक सिमित नहीं है । बात सरकार की सोच की है । यह सरकार
सिर्फ अमीरो के बारे में ही सोचती है । क्या आपको पता है की इस सरकार ने ( इलेक्शन
कमिशन ने) व्यवथा की है की भारत से बहार रहने वाले भारत के नागरिक भी इंटरनेट के
जरिये इलेक्शन में मतदान कर सकते है पर भारत का ही मज़दूर जो अपने राज्य से बहार रह
रहा है उसके लिए मतदान की कोई व्यवस्था नहीं है ।
सरकार अक्सर कहती है की भारत के विकास के लिए ऍनआरआयी का साथ चाहिए । यह बिलकुल बोगस प्रोपोगंडा है । विदेश में रहने वाले भारतीयों ने कभी कोई
आवाज़ नहीं उठायी जब ट्रम्प ने भारत को जनरल प्रेफरेंस सिस्टम से बहार कर दिया और
तब भी कोई कुछ नहीं बोलै जब ट्रम्प् ने भारत का नाम लेकर अमेरिका को पेरिस डील से बहार निकल गए ।
डायस्पोरा का देश प्रेम देखना हो तो यहूदी को देखिये । यहूदी लॉबी के दबाव के चलते प्रेजिडेंट ट्रम्प ने ईरान पे
क्या क्या पाबंधी नहीं लगायी और इतना ही नहीं प्रेस्डैंट ट्रम्प को जेरुसलम को
इजराइल का कैपिटल होने का रेसोलुशन भी संयुक्त राष्ट्र में लाना पड़ा । भारत के
डायस्पोरा ने सिर्फ अपना ही स्वार्थ देखा है , भारत का नहीं ।
तो फिर सवाल यह है की मोदी
सरकार डायस्पोरा के लिए इतना कुछ क्यों कर रही है? सीधा जवाब है की हूस्टन और
वेम्ब्ली में अपने लिए ताली बजवाने के लिए । मिस्टर मोदी आप भारतीयों के वडाप्रधान
है और टाइम आ गया है की आप इस बात को समजे । हूस्टन
में अपने लिए तालिया बजाने वाली पालिसी से बहार निकलिए और खुद कल शाम ५ बजे भारत के मज़दूर
की जो भूखे - प्यासे अपने घर से दूर शहरों में फंसे है उनके भारत के विकास में
किये गए योगदान के लिए थाली और ताली दोनों बजाये ।
शहरों
में फंसे मज़दूर के लिए समस्या सिर्फ खाने - पिने की नहीं है । शहरों
में फंसे मज़दूर गाओं
में रहे रहे अपने बूढ़े माँ बाप, पत्नी
और बच्चो के लिए चिंतित है । कई
मनोचिकित्सक लॉक डाउन के चलते नॉमर्ल लोगो में भी उत्पन हो सकती मानसिक बीमारियों
के लिए चिंतित है तो आप समजिये की अपने घर - गाओं से दूर फंसे हुए मज़दूर की मन की
स्थिति क्या होगी । मिस्टर
मोदी आप अपनी मन की बात करने के बजाये मज़दूर की मन की व्यथा समजिये और जल्दी ही
उनके और उनके परिवार के अच्छे स्वाथय के
लिए योजना बनाये ।
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