कामदारो का कारवां

Yesterday I listen to a podcast of the BBC Hindi.  ( Link ) 

This podcast touched deeply and It forced me to recall the time of day after the announcement of the lockdown. Most of all of us were stood in the line of the grocery stores when a Caravan of the Labors was preparing to leave for their home on feet. I also feel guilty as I can not extend the hand of help to any needy. But I feel less guilty as I didn’t keep silence and Wrote in strong words at all a possible platform for the rights and safety of labours.




Here are a few lines which I write after listening to this podcast


जब तुम शाम पांच बजे 'थाली" बजा रहे थे
तब कोई थातुम्हारे ही शहर में जो "भूख" से परेशान था...
काश वह थाली किसी की भूख मिटा सकती


जब हम "२०० मिलीलीटर" सेनेटाइजर की बोतल के लिए पुरे शहर में शोर मचा रहे थे,
तब कोई था हमारे ही शहर में जो "२०० मिल" दूर अपने गाओं  की और पैदल ही निकल पड़ा था 
वह भी चुप चाप !


जब "सोशल डिस्टन्सिंग" के नाम पर हम अपनों से  दूरी बनाये बैठे थे,
तब भी कोई था जो अपनों से दूर था और "सोशल डिस्टेंस" मिटाने के लिए पैदल चल निकला था


जब तुम दूरदर्शन पे राम-सीता को "वनवास" जाते देख रहे थे
तब कोई राम था तुम्हारे ही आस पास ... जो अपनी सीता के साथ "घर" लौट रहा था 


जब तुम शाम ९ बजे "दिया" जलाने के लिए तेल निकाल रहे थे बोतल से 
तब भी कोई था जो "एक बूँद तेल" के लिए PDS की दुकान में लाइन में लगा था
काश हम उनकी ज़िन्दगी में कुछ रौशनी ला पाते


जब तुम ट्विटर पे शक्तिमान चलाने की मांग कर रहे थे,तब तुम्हारे ही आस पास था एक शक्तिमान जो पुरे परिवार का बोज अपने कंधे पे लिए चल निकला था 


जब तुम फेसबुक पर साड़ी पहनकर अपनी सहेली को को चैलेंज दे रहे थे,
तब तुम्हारे ही आस पास एक महिला थी जॉ साडी के पल्लू में अपने बच्चे को लपेटकर २०० मिल के सफर पर नंगे पाँव निकल पड़ी थी

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